Monday, November 23, 2009

हाय रे पैसा !

पैसा, न हो तो दिक्कत और ज्यादा हो तो दिक्कत ये दोनों एक दूसरे के पूरक है बिना दिक्कत के पैसे की कल्पना ही बेकार है. इसकी जरूरत मानव के जन्म से लेकर मरण तक है ! जिसके पास इसका अभाव है उसे बस दिन रात इसी की चिंता रहती है कि इस अभाव को दूर कैसे किया जाये और जिसके पास बहुत है वो इसी चिंता में है कि दूसरे लोगो कि नज़रो से इसे सुरक्षित कैसे रखा जाये.पर दुनिया बड़ी जालिम है दूसरो कि बेईमानी हजम ही नहीं होती बस मौका मिला नहीं कि कर दिया नंगा,अब घूम घूम कर लाज बचाते फिरो.
बेचारे मधु कोड़ा भारत के लोगो पर भरोसा नहीं किया और भेज दिया पैसा बाहर ये सोचा कि वहा सुरक्षित रहेगा और किसी को कानो कान खबर भी नहीं होगी पर जनाब गया तो भारत से ही ना अब ये भला कैसे हज़म कि जा सकती थी अब जिन भी गरीब और मजबूर लोगो का पैसा मारा गया उनकी दुआए तो साथ रहेंगी ही बस दुआओ का असर हुआ और बात खुल गयी और जब बात दुनिया के सामने खुल गयी तो अब कुछ न कुछ तो होगा ही हमे तो बस नतीजों का इंतज़ार है
इंसान कि लालसा ही उसे ले डूबती है, ५५० करोड़ ही तो थे अरे इसका जो भी पाप लगता है वो ५० लाख मंदिर में दान कर देने से भी ख़त्म हो जायेगा अरे समंदर से दो चार बूँद निकल भी गए तो समंदर पर कौन सी आफत आ जाएगी पर ज्वार तो बता कर नहीं आता, चले थे आगे कि सात पुश्तो को बनाने के लिए और वर्तमान का ही भविष्य अधर में हो गया !
हमे अपनी न्याय प्रणाली पर पूर्ण विश्वास है थोड़ी धीमी है पर इस धीमेपन का भी न्यायलय का अपना तर्क है कि - "हम किसी बेकसूर को सजा नहीं देना चाहते इसलिए हम तब तक कोई निर्णय नहीं लेते जब तक हमे पूर्ण विश्वास ना हो जाये कि सामने वाला दोषी है !"
अगर गलतिया पर मंथन करे तो मैंने पाया है कि इन सभी के लिए हम स्वयं दोषी है , मै आप और वो सभी आम नागरिक जो ऐसे लोगो को देश कि सेवा करने के लिए चुनते है, हमे अब इन बहुरूपियों को पहचानना होगा निशित ही ये एक कठिन कार्य है परन्तु अगर हमने ऐसा नहीं किया तो ऐसे लोग देश कि आर्थिक व्यस्था कि कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे!
आपकी इस बारे में क्या राय है हमे जरूर बताये..
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