सबसे पहले तो सभी पाठको को नूतन वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाये !!!
हर वर्ष की भाति इस वर्ष भी हमने ये जरूर तय किया होगा कि इस नए साल पर हमे क्या कुछ नया करना है और कौन सी अपनी बुरी चीज़ को अपने आप से दूर करना है.
मैंने भी अपने लिए कुछ सोचा है और सोचा है देश के सारे मंत्रियो और नेताओ के लिए भी क्योंकि उन्हें तो अब पैसे और भ्रष्टाचार के अलावा और कुछ सोचने का समय नहीं है वैसे भी वो इतने बुद्धिजीवी है कि उन्हें अपने अन्दर कोई भी बुरी चीज़ नहीं दिखाई देती. इसलिए सोचने का काम केवल हम मूर्ख आम आदमियों का है !
वैसे भी वो सोच कर क्या करेंगे उनके हाथ तो माया ने रोक रखे है वो चाह कर भी कुछ अच्छा नहीं कर सकते क्योंकि अच्छा करने पर केवल जनता कि तालिया ही मिलेगी जिसका कोई मोल नहीं है और इससे उनका क्या भला इसलिए वो अपने इस अच्छे समय का पूर्ण उपयोग कर रहे है अपना, अपने परिवार का यहाँ तक कि अपने आने वाली सात पुश्तो का भविष्य अभी से सुरक्षित कर रहे है. भारत कि न्याय प्रणाली और कार्य प्रणाली को वो पूर्ण रूप से दीमक कि तरह चाट चुके है उन्हें मालूम है कि इस देश में उनके ऊपर कोई नहीं है जो उन्हें उनके कृत्य के लिए रोक सके ! लोग यदि उन्हें बुरा भला कहते है तो इसमें भी उनका यही तर्क होता है बाहर रह कर नेताओ को गालिया देना आसान है राजनीति में आओ तब पता चलेगा कि वास्तविकता क्या है !
पर उन्हें कौन बताये कि अब राजनीति कि परिभाषा और मायने पूरी तरह से बदल चुके है राजनीति में आने के लिए एक व्यक्ति के अन्दर जो गुण होने चाहिए वो एक आदमी अपने अन्दर कभी नहीं ला सकता क्योंकि उसे अपने जमीर से नीचे गिर कर वो काम करना पड़ेगा जिसके बारे में वो सोच भी नहीं सकता.
कभी सोने कि चिड़िया कहा जाने वाला ये देश अब केवल चिड़िया बन कर ही रह गया है जिसके पर हमारे देश के सरकारी अफसरों , भ्रष्ट नेताओ और महंगाई ने काट दिया है जो इस स्वछंद आकाश में उड़ नहीं सकता. ये है विश्व के सामने भारत कि सुपर पॉवर प्रस्तुति जिसके सहारे वो विकासशील देश से विकसित देश कि ओर अग्रसित हो रहा है
घोटालो और मंहगाई ने हर देशवासी को सोचने पर मजबूर कर दिया है,घोटाले भी ऐसे जिनके रकम से एक छोटा देश विकसित हो जाये,. हमारी सरकार इस सब को रोकने में पूरी तरह से विफल रही है जो प्याज कभी गरीब आदमी के लिए संबोधित किया जाता था उसे उस गरीब की थाली से खींच लिया गया है.. गरीब के जरूरत के हर सामन अब इस दाम तक पहुच गए है जिसे पाने में उसकी कमर ही टूट जाये.
आखिर कब तक एक आदमी इन नेताओ के पैसे की हवस का शिकार होता रहेगा.
शायद ये अंतहीन है... या हम खुद नहीं चाहते की इन सबका कभी अंत हो..
आपके जवाब का हमे इंतज़ार रहेगा..
हर वर्ष की भाति इस वर्ष भी हमने ये जरूर तय किया होगा कि इस नए साल पर हमे क्या कुछ नया करना है और कौन सी अपनी बुरी चीज़ को अपने आप से दूर करना है.
मैंने भी अपने लिए कुछ सोचा है और सोचा है देश के सारे मंत्रियो और नेताओ के लिए भी क्योंकि उन्हें तो अब पैसे और भ्रष्टाचार के अलावा और कुछ सोचने का समय नहीं है वैसे भी वो इतने बुद्धिजीवी है कि उन्हें अपने अन्दर कोई भी बुरी चीज़ नहीं दिखाई देती. इसलिए सोचने का काम केवल हम मूर्ख आम आदमियों का है !
वैसे भी वो सोच कर क्या करेंगे उनके हाथ तो माया ने रोक रखे है वो चाह कर भी कुछ अच्छा नहीं कर सकते क्योंकि अच्छा करने पर केवल जनता कि तालिया ही मिलेगी जिसका कोई मोल नहीं है और इससे उनका क्या भला इसलिए वो अपने इस अच्छे समय का पूर्ण उपयोग कर रहे है अपना, अपने परिवार का यहाँ तक कि अपने आने वाली सात पुश्तो का भविष्य अभी से सुरक्षित कर रहे है. भारत कि न्याय प्रणाली और कार्य प्रणाली को वो पूर्ण रूप से दीमक कि तरह चाट चुके है उन्हें मालूम है कि इस देश में उनके ऊपर कोई नहीं है जो उन्हें उनके कृत्य के लिए रोक सके ! लोग यदि उन्हें बुरा भला कहते है तो इसमें भी उनका यही तर्क होता है बाहर रह कर नेताओ को गालिया देना आसान है राजनीति में आओ तब पता चलेगा कि वास्तविकता क्या है !
पर उन्हें कौन बताये कि अब राजनीति कि परिभाषा और मायने पूरी तरह से बदल चुके है राजनीति में आने के लिए एक व्यक्ति के अन्दर जो गुण होने चाहिए वो एक आदमी अपने अन्दर कभी नहीं ला सकता क्योंकि उसे अपने जमीर से नीचे गिर कर वो काम करना पड़ेगा जिसके बारे में वो सोच भी नहीं सकता.
कभी सोने कि चिड़िया कहा जाने वाला ये देश अब केवल चिड़िया बन कर ही रह गया है जिसके पर हमारे देश के सरकारी अफसरों , भ्रष्ट नेताओ और महंगाई ने काट दिया है जो इस स्वछंद आकाश में उड़ नहीं सकता. ये है विश्व के सामने भारत कि सुपर पॉवर प्रस्तुति जिसके सहारे वो विकासशील देश से विकसित देश कि ओर अग्रसित हो रहा है
घोटालो और मंहगाई ने हर देशवासी को सोचने पर मजबूर कर दिया है,घोटाले भी ऐसे जिनके रकम से एक छोटा देश विकसित हो जाये,. हमारी सरकार इस सब को रोकने में पूरी तरह से विफल रही है जो प्याज कभी गरीब आदमी के लिए संबोधित किया जाता था उसे उस गरीब की थाली से खींच लिया गया है.. गरीब के जरूरत के हर सामन अब इस दाम तक पहुच गए है जिसे पाने में उसकी कमर ही टूट जाये.
आखिर कब तक एक आदमी इन नेताओ के पैसे की हवस का शिकार होता रहेगा.
शायद ये अंतहीन है... या हम खुद नहीं चाहते की इन सबका कभी अंत हो..
आपके जवाब का हमे इंतज़ार रहेगा..
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