नैतिकता अपने आप में एक बड़ा विषय रहा है प्राचीन काल में बड़े बड़े राजा महाराजा गुरुकुल में वर्षो तक नैतिकता का पाठ पढ़ते रहते थे, और अपनी प्रजा और समाज के प्रति पूरी कर्तव्यनिष्ठता से उस नैतिकता का पालन करते थे !
समय के साथ जैसे जैसे परिवेश बदला वैसे ही नैतिकता का पाठ भी बदलता चला गया, अब तो शायद हम ये भी भूल चुके है की असल में नैतिकता कहते किसको है! वैसे अगर देखे तो जो थोड़ी बहुत नैतिकता लोगो के अन्दर बची हुई है वो केवल दूसरे लोगो को सिखाने के लिए ही है, भले ही वो हम खुद पर लागू करते हो या न करते हो पर हमेशा दूसरे लोगो पर थोपने की कोशिश जरूर करते है!
अब बात करते है नैतिक उत्तरदायित्व की एक परिवार के मुखिया का नैतिक उत्तरदायित्व क्या है.? यही की उसके परिवार के हर सदस्यों की सारी जरूरते पूरी हो, किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट न हो और इसी नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए वो हाड तोड़ मेहनत करता है बदले में उसे अपने परिवार और समाज से सम्मान और इज्जत मिलती है, इसी बात को अगर हम बड़े स्तर पर सोचे तो हम एक परिवार है और हमारे द्वारा चयनित ये नेता हमारे परिवार के मुखिया हम ने इन्हें मुखिया क्यों चुना ? जिस से ये हमारे परिवार के हर सदस्यों को एक साथ ले चले उनकी छोटी बड़ी सारी जरूरतों को पूरा कर सके और और परिवार के सदस्यों के बीच कोई मतभेद हो तो उसका निवारण कर सके, ये इनका नैतिक उत्तरदायित्व है पर क्या ये अपने नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति कर पा रहे है ?
अगर ये कर पा रहे होते तो हम आप इस विषय पर मंथन ना कर रहे होते पर ऐसा क्यों है इसका यही कारण है की ये समाज के लोगो को अपना परिवार नहीं समझते इन्होने अपना परिवार सीमित कर रखा है ये केवल उस सीमित परिवार के बारे में ही सोचते है केवल उन्ही का भला चाहते है ...
इनकी कर्तव्यनिष्ठता और नैतिकता केवल परिवार का मुखिया बनने तक ही सीमित होती है उसके बाद इस नैतिकता का कोई मतलब नहीं रह जाता इनकी सत्ता की लालसा ही इनकी नैतिकता को ख़त्म कर रही है जिसको जितना ही मिले उनता ही कम है बल्कि और ज्यादा पाने की कामना मन में बनी रहती है, ये दौड़ कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ है जिसमे मंजिल कभी भी निश्चित नहीं होती बस दौड़ते ही जाओ जब तक आप दौड़ सकते हो !
हमारे सामने तो सबसे बड़ी समस्या ये है की हम उन्हें इस भूलती नैतिकता का पाठ कैसे सिखाये ?
आप हमे अपने विचार जरूर बताये...
समय के साथ जैसे जैसे परिवेश बदला वैसे ही नैतिकता का पाठ भी बदलता चला गया, अब तो शायद हम ये भी भूल चुके है की असल में नैतिकता कहते किसको है! वैसे अगर देखे तो जो थोड़ी बहुत नैतिकता लोगो के अन्दर बची हुई है वो केवल दूसरे लोगो को सिखाने के लिए ही है, भले ही वो हम खुद पर लागू करते हो या न करते हो पर हमेशा दूसरे लोगो पर थोपने की कोशिश जरूर करते है!
अब बात करते है नैतिक उत्तरदायित्व की एक परिवार के मुखिया का नैतिक उत्तरदायित्व क्या है.? यही की उसके परिवार के हर सदस्यों की सारी जरूरते पूरी हो, किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट न हो और इसी नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए वो हाड तोड़ मेहनत करता है बदले में उसे अपने परिवार और समाज से सम्मान और इज्जत मिलती है, इसी बात को अगर हम बड़े स्तर पर सोचे तो हम एक परिवार है और हमारे द्वारा चयनित ये नेता हमारे परिवार के मुखिया हम ने इन्हें मुखिया क्यों चुना ? जिस से ये हमारे परिवार के हर सदस्यों को एक साथ ले चले उनकी छोटी बड़ी सारी जरूरतों को पूरा कर सके और और परिवार के सदस्यों के बीच कोई मतभेद हो तो उसका निवारण कर सके, ये इनका नैतिक उत्तरदायित्व है पर क्या ये अपने नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति कर पा रहे है ?
अगर ये कर पा रहे होते तो हम आप इस विषय पर मंथन ना कर रहे होते पर ऐसा क्यों है इसका यही कारण है की ये समाज के लोगो को अपना परिवार नहीं समझते इन्होने अपना परिवार सीमित कर रखा है ये केवल उस सीमित परिवार के बारे में ही सोचते है केवल उन्ही का भला चाहते है ...
इनकी कर्तव्यनिष्ठता और नैतिकता केवल परिवार का मुखिया बनने तक ही सीमित होती है उसके बाद इस नैतिकता का कोई मतलब नहीं रह जाता इनकी सत्ता की लालसा ही इनकी नैतिकता को ख़त्म कर रही है जिसको जितना ही मिले उनता ही कम है बल्कि और ज्यादा पाने की कामना मन में बनी रहती है, ये दौड़ कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ है जिसमे मंजिल कभी भी निश्चित नहीं होती बस दौड़ते ही जाओ जब तक आप दौड़ सकते हो !
हमारे सामने तो सबसे बड़ी समस्या ये है की हम उन्हें इस भूलती नैतिकता का पाठ कैसे सिखाये ?
आप हमे अपने विचार जरूर बताये...