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Wednesday, December 30, 2009

नैतिकता

नैतिकता अपने आप में एक बड़ा विषय रहा है प्राचीन काल में बड़े बड़े राजा महाराजा गुरुकुल में वर्षो तक नैतिकता का पाठ पढ़ते रहते थे, और अपनी प्रजा और समाज के प्रति पूरी कर्तव्यनिष्ठता से उस नैतिकता का पालन करते थे !
समय के साथ जैसे जैसे परिवेश बदला वैसे ही नैतिकता का पाठ भी बदलता चला गया, अब तो शायद हम ये भी भूल चुके है की असल में नैतिकता कहते किसको है! वैसे अगर देखे तो जो थोड़ी बहुत नैतिकता लोगो के अन्दर बची हुई है वो केवल दूसरे लोगो को सिखाने के लिए ही है, भले ही वो हम खुद पर लागू करते हो या न करते हो पर हमेशा दूसरे लोगो पर थोपने की कोशिश जरूर करते है!
अब बात करते है नैतिक उत्तरदायित्व की एक परिवार के मुखिया का नैतिक उत्तरदायित्व क्या है.? यही की उसके परिवार के हर सदस्यों की सारी जरूरते पूरी हो, किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट न हो और इसी नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए वो हाड तोड़ मेहनत करता है बदले में उसे अपने परिवार और समाज से सम्मान और इज्जत मिलती है, इसी बात को अगर हम बड़े स्तर पर सोचे तो हम एक परिवार है और हमारे द्वारा चयनित ये नेता हमारे परिवार के मुखिया हम ने इन्हें मुखिया क्यों चुना ? जिस से ये हमारे परिवार के हर सदस्यों को एक साथ ले चले उनकी छोटी बड़ी सारी जरूरतों को पूरा कर सके और और परिवार के सदस्यों के बीच कोई मतभेद हो तो उसका निवारण कर सके, ये इनका नैतिक उत्तरदायित्व है पर क्या ये अपने नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति कर पा रहे है ?
अगर ये कर पा रहे होते तो हम आप इस विषय पर मंथन ना कर रहे होते पर ऐसा क्यों है इसका यही कारण है की ये समाज के लोगो को अपना परिवार नहीं समझते इन्होने अपना परिवार सीमित कर रखा है ये केवल उस सीमित परिवार के बारे में ही सोचते है केवल उन्ही का भला चाहते है ...
इनकी कर्तव्यनिष्ठता और नैतिकता केवल परिवार का मुखिया बनने तक ही सीमित होती है उसके बाद इस नैतिकता का कोई मतलब नहीं रह जाता इनकी सत्ता की लालसा ही इनकी नैतिकता को ख़त्म कर रही है जिसको जितना ही मिले उनता ही कम है बल्कि और ज्यादा पाने की कामना मन में बनी रहती है, ये दौड़ कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ है जिसमे मंजिल कभी भी निश्चित नहीं होती बस दौड़ते ही जाओ जब तक आप दौड़ सकते हो !
हमारे सामने तो सबसे बड़ी समस्या ये है की हम उन्हें इस भूलती नैतिकता का पाठ कैसे सिखाये ?
आप हमे अपने विचार जरूर बताये...

Thursday, November 19, 2009

एक और विभाजन कि तरफ बढ़ता भारत !

१४ अगस्त १९४७ भारत के इतिहास में एक बुरे स्वप्न की तरह था जिसे इस देश के हर नागरिक ने महसूस किया और साथ ही साथ ये प्रार्थना भी की कि भविष्य में ऐसा दिन अपने देश को कभी भी न देखना पड़े! इसी दिन भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान का जन्म हुआ, वाकई ये एक ऐसा समय था जब परिस्थितिया अनुकूल नहीं थी और जिस एक भारत का सपना हमारे नेताओ ने देखा तो वो टूट चूका था परन्तु उसके बाद भी उन्होंने कोशिश की कि ये एक भारत का सपना हर भारतीय के दिल में रहे, हमे गर्व होता है ये कहने में कि हम भारतीय है और होना भी चाहिए.क्योंकि जिस व्यक्ति को अपने देश से प्यार ना हो उसका जीवन व्यर्थ है परन्तु यहाँ कुछ लोगो को ये कहने में ज्यदा गर्व महसूस होता है कि वो मराठी है या दक्षिण भारतीय है उन्हें लगता है कि वो बाकी के भारतीयों से अलग है पर अफ़सोस वो कितना गलत सोचते है मै आप सभी का ध्यान मनसे के तरफ ले जाना चाहता हूँ मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना )
ये लोग जो कर रहे है उस से ये चीज़ तो पता चलती है कि उन्हें अपने राज्य से कितना प्रेम है पर जिस तरीके से कर रहे है क्या वो तरीका सही है ? नहीं मेरी समझ से तो ये बिलकुल ही गलत है अपने अधिकारों का गरीब और मजबूर लोगो पर गलत तरीके से प्रयोग करना सही नहीं है. और हम इसे किसी भी रूप में सही नहीं ठहरा सकते! २६/११ का दिन केवल मुंबई ही नहीं अपितु पुरे देश के लिए एक काला दिन था जब मुंबई के ताज होटल के साथ ही साथ अन्य प्रतिष्ठित स्थान आतंकवादियों से घिरे हुए थे सेना के जवान जांबाजी से उन आतंकवादियों का डट कर मुकाबला कर रहे थे क्या उन जवानों में सब मराठी ही थे ? नहीं, उन जवानों के लिए देश ही सबसे ऊपर है उन के लिए मुंबई, दिल्ली , कश्मीर सब एक है. उनका मकसद देश और देशवासियों कि रक्षा करना था और वो अपने कर्त्तव्य का निर्वाह पूरी तत्परता के साथ कर रहे थे उनके मन में तनिक भी ये विचार नहीं था कि ये वो राज्य है जहा के लोग देश के अन्य राज्यों से नफरत करते है
सबसे बड़ी बात तो मै ये जानना चाहता हूँ कि मनसे के वो कार्यकर्ता उस वक़्त कहा थे जब आतंकवादी मुंबई का सीना छलनी कर रहे थे क्या उस समय उनका राज्य प्रेम ख़त्म हो गया था या वो डर रहे थे ?
वो अपनी ताकत का प्रयोग केवल निहत्थे और मजबूर लोगो पर ही कर सकते है और इसी में वो अपना बड़प्पन और शान समझते है.
अभी हाल ही में जो मुंबई विधान सभा में घटित हुआ उस से विधान सभा कि मर्यादा बुरी तरीके से आहत हुई है ये वाकई एक अशोभनीय कृत्य था कि एक प्रतिनिधि ने दूसरे प्रतिनिधि को केवल इस वजह से थप्पड़ मार दिया क्योंकि उसने शपथ स्थानीय भाषा कि जगह राष्ट्र भाषा हिंदी में लिया हमारी राष्ट भाषा हिंदी का स्थान किसी भी अन्य स्थानीय भाषा से ऊपर था , है और रहेगा ये बात उन्हें मालूम होनी चाहिए. हमें ऐसे लोगो के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे जो अपने आप को देश के और देश के संविधान के ऊपर समझते है जिनके लिए कानून कोई मायने नहीं रखता.
अगर इन्हें अभी नहीं रोका गया तो फिर ये देश दूसरे विभाजन के लिए तैयार रहे जिसे कोई नहीं रोक सकता !!
आपकी इस बारे में क्या राय है ?

Tuesday, November 10, 2009

2nd October - A Dry Day!

2nd October. a great day of Indian history and i hope everybody is aware of it.
Ok let me explain for those who don't know what had happenned on this date?
So my friend at this day we got a man with a great personality named Mohan Das Karamchand Gandhi and in short we call him Mahatma Gandhi or Baapu. Another famous personality and a great prime minister of India also had born the same day 2nd October named Lal Bahadur Shastri.
But unfortunately these days we are celebrating this day as a national holiday and it is also known as the Dry Day(no alcohal day).
It is good that we take a holiday on this date. But when the holiday was declared, the purpose of holiday was also mentioned.
We know that how many peoples are there who remembered Gandhiji and Lal Bahadur Shashtriji on this day.
i have just read a local newspaper which published a survey, based on some reputed schools of the city and also some politicians.
Reporters from the local newspaper just want to know the answer that who know the meaning and purpose of 2nd October and want to know more about Gandhi ji and Shastri ji.
Students answered that Gandhi ji was born on 2nd October. Few of them also mentioned Gandhi ji's full name, They also knew that Gandhi ji was a leader who fought against Britishers who ruled over India. Besides the bookish and common knowledge about Gandhi ji they don't know anything else. This actually get me killed and made me sad.
And our politicians - ohhhhh really great. They don't knew what is the full name of Gandhi ji ? What he does for our country.
some politicians tried to avoid the reporters. I am feeling ashamed of these modern netas of India.
I have also noticed on this day where some people trying to get some drops of alcohol near liquor shops. As we know that due to 2nd October all the shops were closed, they were finding it difficult to get alcohol.
We can easily assume what they thought about Gandhi ji on that time. I just wanted to ask everyone through this article.-
What is the exact meaning of 2nd October and what is the real purpose of this holiday...

Please comment if you have the answer. Will help others as well as me.........

Saturday, November 7, 2009

Voice of Vivekananda - II

  • You are the makers of your own fortunes. You make yourselves suffer, you make good and evil, and it is you who put your hands before your eyes and say it is dark. Take your hands away and see the light.
  • The senses cheat you day and night. Vedanta found that out ages ago, modern science is just discovering the same fact.
  • It will not do merely to listen to great principles. You must apply them in the practical field, turn them into constant practice.
  • Of Jnana and Bhakti, he who advocates one and denounces the other cannot be either a Jnanin or a Bhakta, but he is a thief and a cheat.
  • While real perfection is only one, relative perfections must be many.
  • The wind of grace of the Lord is blowing on, for ever and ever. Do you spread your sail.
  • Practice is absolutely necessary. You may be sit down and listen to me by the hour every day, but if you do not practice, you will not get one step further.
  • So long as the 'skin sky' surrounds man, that is, so long as he identifies himself with his body, he cannot see God.
  • Men worship Incarnations such as Christ or Buddha. The are the most perfect manifestations of the eternal Self. They are much higher than all the conceptions of God That you or I can make.
  • The Happiest moments we ever know are when we entirely forget ourselves.
  • Books cannot teach God, but they can destroy ignorance; their action is negative.
  • The monk is the religious expert, having made religion his one metier of life. He is the soldier of God.
  • I do not believe in a God who cannot give me bread here, giving me eternal bliss in heaven!
  • The first thing to be got rid of by him who would be a Jnani, is fear.
  • Brahmin, this Reality, is unknown and unknowable, not in the sense of the agnostic, but because to know him would be a blasphemy, because you are He already.

Saturday, October 10, 2009

Moral: By Swami Vivekananda - I

Here i am sharing some of the morals from "The Voice of Vivekananda" book. Those who have not read it yet , can get his thoughts from here.

Here are few...
  1. Man comes from God in the beginning, in the middle he becomes man, and in the end he goes back to God.
  2. He is an Acharya through whom the Divine Power acts.
  3. According to Karma Yoga, the action one has done cannot be destroyed, until it has borne its fruit; no power in nature can stop it from yielding its results.
  4. Know it for certain that there is no greater Tirtha (holy spot) than the body of man. Nowhere else is the atman so manifest as here.
  5. This world i just a gymnasium in which we play; our life is an eternal holiday.
  6. Strength is the one thing needful. Strength is the medicine for the world's disease. And nothing gives such strength as the idea of Monism.
  7. Despondency is not religion whatever else it may be. By being pleasant always and smiling, it takes you nearer to God, nearer than any prayer.
  8. Any new discovery of truth does not contradict the past truth, but fits into it.
  9. Our King Janaka tilled the soil with his own hands, and he was also the greatest of the knowers of Truth, of his time.
  10. Not believing in the glory of our own soul is what the Vedanta calls atheism.