एक समय था जब गरीब आदमी बस भगवान से यही प्रार्थना करता था कि हे प्रभु बस किसी तरह से दो वक़्त कि दाल रोटी का जुगाड़ कर दे पर अब तो उसकी थाली से ये दाल नाम कि चीज़ भी छीन ली गयी है अब प्रार्थना करना भी महंगा हो गया है हर आदमी परेशान है इस दाल रोटी के चक्कर में, इस कमर तोड़ महंगाई ने सबकी हालत पतली कर रखी है. अगर इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी पर असर पड़ा है तो वो सिर्फ गरीब तबके पर उसकी थाली से अब एक एक करके सारी चीज़े गायब होती जा रही है अब लगता है उसे भविष्य में हवा और पानी के सहारे ही जीवन व्यतीत करना पड़ेगा अगर सरकार कि नीयत इन चीजों पर ख़राब नहीं हुई तो, वैसे सरकार का भी क्या भरोसा कब इन पर भी टैक्स लगा दे .और सबसे बड़ी बात तो यइ कि हमारे नेताओ के लिए ये कोई मुद्दा ही नहीं है.क्योंकि उनकी रूचि तो बस तेलंगाना मुद्दे और बाबरी मुद्दे पर ही है क्योंकि इन्ही मुद्दों पर वो अपना पूरा ध्यान केन्द्रित किये हुए है. और हो भी क्यों न जिस दाल और रोटी कि बात हो रही है वो तो उन्हें जरूरत से ज्यदा ही मिल रही है तो फिर ये विषय तो उनके लिए व्यर्थ ही होगा. उनका विषय तो बस यही तक सिमट कर रह जाता है कि उनको दी जाने वाली सुविधाओ को और कैसे बढाया जाये, उनके भत्ते पर कोई भी आंच न आये और सबसे बड़ी बात कि वो जिस मुद्दे के लिए लड़ रहे हो उसमे पब्लिसिटी का पूरा इंतजाम होना चाहिए, तो भला दाल रोटी से किसे कितना नाम मिल सकता है अभी हाल ही में एक समाचार पत्र में नेताओ और उनके संबंधियों को दी जाने वाली सुविधाओ के बारे में पढ़ रहा था पढ़ कर मन बहुत आहत हुआ एक तरफ तो ये जनता की भलाई का ढोंग करते है उनकी सुविधाओ की बाते करते है पर ये सब केवल बातो तक ही सीमित रहता है उनका मुख्या उद्देस्य अपनी सुविधाओ को बढ़ाना है, हमारे नेताओ ने अपने ऐशो आराम के साधनों में कोई कटौती नहीं की और इन सभी खर्चो का बोझ वो जनता के पीठ पर फेंक रहे है जिसकी वजह से जनता दिनों दिन टूटती जा रही है कभी बेरोज़गारी कभी टैक्स का बोझ और अब ये महंगाई.. हमारे पास पूरी जिन्दगी क्या सिर्फ लड़ने के लिए ही है..?
अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में महंगाई की समस्या और जटिल होती जाएगी जिस से पार पाना आसान न होगा !
अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में महंगाई की समस्या और जटिल होती जाएगी जिस से पार पाना आसान न होगा !
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