Thursday, December 31, 2009
नव वर्ष की शुभकामनाये..
3acesnetwork के सभी पाठको को नूतन वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाये, यह वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलकारी हो...!!!!
Wednesday, December 30, 2009
नैतिकता
नैतिकता अपने आप में एक बड़ा विषय रहा है प्राचीन काल में बड़े बड़े राजा महाराजा गुरुकुल में वर्षो तक नैतिकता का पाठ पढ़ते रहते थे, और अपनी प्रजा और समाज के प्रति पूरी कर्तव्यनिष्ठता से उस नैतिकता का पालन करते थे !
समय के साथ जैसे जैसे परिवेश बदला वैसे ही नैतिकता का पाठ भी बदलता चला गया, अब तो शायद हम ये भी भूल चुके है की असल में नैतिकता कहते किसको है! वैसे अगर देखे तो जो थोड़ी बहुत नैतिकता लोगो के अन्दर बची हुई है वो केवल दूसरे लोगो को सिखाने के लिए ही है, भले ही वो हम खुद पर लागू करते हो या न करते हो पर हमेशा दूसरे लोगो पर थोपने की कोशिश जरूर करते है!
अब बात करते है नैतिक उत्तरदायित्व की एक परिवार के मुखिया का नैतिक उत्तरदायित्व क्या है.? यही की उसके परिवार के हर सदस्यों की सारी जरूरते पूरी हो, किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट न हो और इसी नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए वो हाड तोड़ मेहनत करता है बदले में उसे अपने परिवार और समाज से सम्मान और इज्जत मिलती है, इसी बात को अगर हम बड़े स्तर पर सोचे तो हम एक परिवार है और हमारे द्वारा चयनित ये नेता हमारे परिवार के मुखिया हम ने इन्हें मुखिया क्यों चुना ? जिस से ये हमारे परिवार के हर सदस्यों को एक साथ ले चले उनकी छोटी बड़ी सारी जरूरतों को पूरा कर सके और और परिवार के सदस्यों के बीच कोई मतभेद हो तो उसका निवारण कर सके, ये इनका नैतिक उत्तरदायित्व है पर क्या ये अपने नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति कर पा रहे है ?
अगर ये कर पा रहे होते तो हम आप इस विषय पर मंथन ना कर रहे होते पर ऐसा क्यों है इसका यही कारण है की ये समाज के लोगो को अपना परिवार नहीं समझते इन्होने अपना परिवार सीमित कर रखा है ये केवल उस सीमित परिवार के बारे में ही सोचते है केवल उन्ही का भला चाहते है ...
इनकी कर्तव्यनिष्ठता और नैतिकता केवल परिवार का मुखिया बनने तक ही सीमित होती है उसके बाद इस नैतिकता का कोई मतलब नहीं रह जाता इनकी सत्ता की लालसा ही इनकी नैतिकता को ख़त्म कर रही है जिसको जितना ही मिले उनता ही कम है बल्कि और ज्यादा पाने की कामना मन में बनी रहती है, ये दौड़ कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ है जिसमे मंजिल कभी भी निश्चित नहीं होती बस दौड़ते ही जाओ जब तक आप दौड़ सकते हो !
हमारे सामने तो सबसे बड़ी समस्या ये है की हम उन्हें इस भूलती नैतिकता का पाठ कैसे सिखाये ?
आप हमे अपने विचार जरूर बताये...
समय के साथ जैसे जैसे परिवेश बदला वैसे ही नैतिकता का पाठ भी बदलता चला गया, अब तो शायद हम ये भी भूल चुके है की असल में नैतिकता कहते किसको है! वैसे अगर देखे तो जो थोड़ी बहुत नैतिकता लोगो के अन्दर बची हुई है वो केवल दूसरे लोगो को सिखाने के लिए ही है, भले ही वो हम खुद पर लागू करते हो या न करते हो पर हमेशा दूसरे लोगो पर थोपने की कोशिश जरूर करते है!
अब बात करते है नैतिक उत्तरदायित्व की एक परिवार के मुखिया का नैतिक उत्तरदायित्व क्या है.? यही की उसके परिवार के हर सदस्यों की सारी जरूरते पूरी हो, किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट न हो और इसी नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए वो हाड तोड़ मेहनत करता है बदले में उसे अपने परिवार और समाज से सम्मान और इज्जत मिलती है, इसी बात को अगर हम बड़े स्तर पर सोचे तो हम एक परिवार है और हमारे द्वारा चयनित ये नेता हमारे परिवार के मुखिया हम ने इन्हें मुखिया क्यों चुना ? जिस से ये हमारे परिवार के हर सदस्यों को एक साथ ले चले उनकी छोटी बड़ी सारी जरूरतों को पूरा कर सके और और परिवार के सदस्यों के बीच कोई मतभेद हो तो उसका निवारण कर सके, ये इनका नैतिक उत्तरदायित्व है पर क्या ये अपने नैतिक उत्तरदायित्व की पूर्ति कर पा रहे है ?
अगर ये कर पा रहे होते तो हम आप इस विषय पर मंथन ना कर रहे होते पर ऐसा क्यों है इसका यही कारण है की ये समाज के लोगो को अपना परिवार नहीं समझते इन्होने अपना परिवार सीमित कर रखा है ये केवल उस सीमित परिवार के बारे में ही सोचते है केवल उन्ही का भला चाहते है ...
इनकी कर्तव्यनिष्ठता और नैतिकता केवल परिवार का मुखिया बनने तक ही सीमित होती है उसके बाद इस नैतिकता का कोई मतलब नहीं रह जाता इनकी सत्ता की लालसा ही इनकी नैतिकता को ख़त्म कर रही है जिसको जितना ही मिले उनता ही कम है बल्कि और ज्यादा पाने की कामना मन में बनी रहती है, ये दौड़ कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ है जिसमे मंजिल कभी भी निश्चित नहीं होती बस दौड़ते ही जाओ जब तक आप दौड़ सकते हो !
हमारे सामने तो सबसे बड़ी समस्या ये है की हम उन्हें इस भूलती नैतिकता का पाठ कैसे सिखाये ?
आप हमे अपने विचार जरूर बताये...
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Monday, December 28, 2009
We chase for what we don't have..
This heading seems quite interesting but its the actual concept behind everyone's life. The thing we already have doesn't attract us and those things which are hard to get attracts us more. This is the basic philosophy of our life and is the truth which could be sometimes hurt us more than any other thing. Sometimes we don't even accept this and sometimes we do.
It depends on why our (Human) nature is just like this.
A pretty example can prove this easily. When we have our parents caring for us and being possessive for us we loose interest in them and despite of this we start taking interests in those objectives which we don't have like bikes, cars, houses, money, girl friends etc. But we often forget and take the things we have as for granted. And sometimes it becomes too late when we realize that the granted things are not their to be remained with us. And that condition makes us the most miserable.
You can ask it to yourself. Until we don't have teeth we will not give them the values they have simply because they are there for granted. We will never give value to our own self in front of money because we often took ourselves for granted. And when we fall on bed with severe disease... We start taking our care as that is the moment we take ourselves not granted and start taking care of ourselves.
Is this good..? Ask yourself.
I have learned from my living experiences that don't take anything for granted. May be at times you can take them for granted but this should be rare as we often don't realize that the things we take for granted are the things we are heavily depending on.
So its better to be early than be late....
Give values to what you already have and start praising what you have... and then make you mind clear to what you want in future. .....
"Think about it".
It depends on why our (Human) nature is just like this.
A pretty example can prove this easily. When we have our parents caring for us and being possessive for us we loose interest in them and despite of this we start taking interests in those objectives which we don't have like bikes, cars, houses, money, girl friends etc. But we often forget and take the things we have as for granted. And sometimes it becomes too late when we realize that the granted things are not their to be remained with us. And that condition makes us the most miserable.
You can ask it to yourself. Until we don't have teeth we will not give them the values they have simply because they are there for granted. We will never give value to our own self in front of money because we often took ourselves for granted. And when we fall on bed with severe disease... We start taking our care as that is the moment we take ourselves not granted and start taking care of ourselves.
Is this good..? Ask yourself.
I have learned from my living experiences that don't take anything for granted. May be at times you can take them for granted but this should be rare as we often don't realize that the things we take for granted are the things we are heavily depending on.
So its better to be early than be late....
Give values to what you already have and start praising what you have... and then make you mind clear to what you want in future. .....
"Think about it".
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Wednesday, December 23, 2009
गरीब की दाल....
एक समय था जब गरीब आदमी बस भगवान से यही प्रार्थना करता था कि हे प्रभु बस किसी तरह से दो वक़्त कि दाल रोटी का जुगाड़ कर दे पर अब तो उसकी थाली से ये दाल नाम कि चीज़ भी छीन ली गयी है अब प्रार्थना करना भी महंगा हो गया है हर आदमी परेशान है इस दाल रोटी के चक्कर में, इस कमर तोड़ महंगाई ने सबकी हालत पतली कर रखी है. अगर इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी पर असर पड़ा है तो वो सिर्फ गरीब तबके पर उसकी थाली से अब एक एक करके सारी चीज़े गायब होती जा रही है अब लगता है उसे भविष्य में हवा और पानी के सहारे ही जीवन व्यतीत करना पड़ेगा अगर सरकार कि नीयत इन चीजों पर ख़राब नहीं हुई तो, वैसे सरकार का भी क्या भरोसा कब इन पर भी टैक्स लगा दे .और सबसे बड़ी बात तो यइ कि हमारे नेताओ के लिए ये कोई मुद्दा ही नहीं है.क्योंकि उनकी रूचि तो बस तेलंगाना मुद्दे और बाबरी मुद्दे पर ही है क्योंकि इन्ही मुद्दों पर वो अपना पूरा ध्यान केन्द्रित किये हुए है. और हो भी क्यों न जिस दाल और रोटी कि बात हो रही है वो तो उन्हें जरूरत से ज्यदा ही मिल रही है तो फिर ये विषय तो उनके लिए व्यर्थ ही होगा. उनका विषय तो बस यही तक सिमट कर रह जाता है कि उनको दी जाने वाली सुविधाओ को और कैसे बढाया जाये, उनके भत्ते पर कोई भी आंच न आये और सबसे बड़ी बात कि वो जिस मुद्दे के लिए लड़ रहे हो उसमे पब्लिसिटी का पूरा इंतजाम होना चाहिए, तो भला दाल रोटी से किसे कितना नाम मिल सकता है अभी हाल ही में एक समाचार पत्र में नेताओ और उनके संबंधियों को दी जाने वाली सुविधाओ के बारे में पढ़ रहा था पढ़ कर मन बहुत आहत हुआ एक तरफ तो ये जनता की भलाई का ढोंग करते है उनकी सुविधाओ की बाते करते है पर ये सब केवल बातो तक ही सीमित रहता है उनका मुख्या उद्देस्य अपनी सुविधाओ को बढ़ाना है, हमारे नेताओ ने अपने ऐशो आराम के साधनों में कोई कटौती नहीं की और इन सभी खर्चो का बोझ वो जनता के पीठ पर फेंक रहे है जिसकी वजह से जनता दिनों दिन टूटती जा रही है कभी बेरोज़गारी कभी टैक्स का बोझ और अब ये महंगाई.. हमारे पास पूरी जिन्दगी क्या सिर्फ लड़ने के लिए ही है..?
अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में महंगाई की समस्या और जटिल होती जाएगी जिस से पार पाना आसान न होगा !
अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में महंगाई की समस्या और जटिल होती जाएगी जिस से पार पाना आसान न होगा !
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Thursday, December 17, 2009
Fear of Falling or Failing
Often many of us have seen that we are running behind the success in our life. Few of them are running for success in their career. few of them for their success in life and rest for their success in relationships. But have you ever think that what is after that success..? If you are succeed with whatever you want in your life, you will either have to start the race of maintaining it or you will loose it after some point of time due to lack of interest or lack of favorible conditions. And once if you get down from it the problem starts creeping. you can't bear to loose at any cost. But then everyone of us should think that its good to be the first but its worst after that. Once you have become first than whats next ?
Have you ever asked this question to yourself. Prior to the success you will feel the answer is that i will become happy, everyone around me will become happier and rest of my life will be in peace, just like i am living in the heaven. But did you ever think that if you are not satisfied with yourself now, you will never be later on. And that is the truth of life.
e.g. First target of a person is to get educated, then to get a best job, then to get good raise regularly, then to get fame, then to get good social status with car, home, furniture and after that to get world's best wife who should be truthful and loyal and then to have a great child to make you fee proud and then their studies and this will end into the infinity loop or recursion with no termination.
We also not want to fail at any of these conditions and races...but somewhere we will fail else we will become god. How to overcome the fear of falling and failing...
Do we only deserve to succeed or failure ?
Is this healthy at all ?
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